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गोपाल राजू की नवीन पुस्तक ‘तंत्र साधना सिद्धि’
का सार-संक्षेप ।
सामग्री –
नदी, कुएं आदि के पास की शुद्व मिट्टी, तिल का तेल, मिट्टी के 11 दीपक, साधक की लंबाई के 11 कच्चे सूत और मदिरा।
शुभ लाभ –
आपत्ति विनाशक, भूत-प्रेत बाधा निवारक, रोग-शोक शमनकारी, मदिरा सेवन करने वाले, मदिरा से छुटकारा पाने वाले तथा मदिरा सेवन न करने वालों के लिए भी विशेष लाभकारी।
जप मंत्र –
‘ॐ ह्रीं बटुकाय आपढुढ्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं।’
सर्वाधिक शुभ मुहूर्त –
राजधानी पंचाग के अनुसार दीपावली महा पर्व इस बार 23 अक्टूबर गुरुवार के दिन पड़ रहा है। इस दिन चित्रा नक्षत्र और विष्कुंभ योग रहेगा। सांय 17:27 से लेकर 20:14 तक प्रदोष काल होगा। प्रदोष काल में स्थिर लग्न सबसे उत्तम होता है। इस निशिथ काल में लाभ का चौघड़िया लक्ष्मी पूजन के लिए विशेष शुभता देता है। इस अवधि में श्रीसूक्त, कनकधारा स्तोत्र तथा लक्ष्मी स्तोत्र आदि धन संबन्धित कार्यो के लिए विशेषरुप से लाभदायक सिद्ध होते हैं।
महानिशीथ काल में स्थिर लग्न अथवा चर लग्न में कर्क लग्न भी हो तो विशेष शुभ धनप्रदायक मुहूर्त बन जाता है। यह सर्वश्रेष्ठ समय 23 अक्टूबर रात्रि में 23:39 से 24:31 तक रहेगा।
तंत्र साधना –
शुभ मुहूर्त से 3 दिन पहले अर्थात् धनतेरस के दिन उपरोक्त जल स्रोत से शुद्ध मिट्टी उपलब्ध करें। धैर्य पूर्वक जैसी भी और जिस आकार की भी श्रद्धा पूर्वक भैरव देव जी की मूर्ति इस मिट्टी को गीला करके बना सकते हैं, बना लें। इसको छांव में सूखने दें। दीपावली के शुभ मुहूर्त में मूर्ति को ऐसे स्थापित करें कि उसका मॅुह पश्चिम् दिशा में रहे। सारे कच्चे सूतों को अलग-अलग 5 बार मोड़कर बत्ती बना लें और सब दीपकों में तिल का तेल डालकर चैतन्य कर लें। मूर्ति पर ध्यान केन्द्रित करके ऐसी भावना बलवती करें कि दीपकों की चैतन्यता के साथ-साथ मूर्ति में प्राण प्रवेश कर रहे हैं। अब 11 माला मंत्र की जप करें। पूरे आत्मविश्वास के साथ ध्यान केन्द्रित करें कि आपके इष्ट कार्य की सिद्वि होगी ही होगी। अंतिम अर्थात् ग्यारहवीं माला में प्रत्येक 108 जप के बाद देव को मदिरा का अभिषेक करें। साधना समाप्ति के पश्चात् मूर्ति तथा सब ठंडे दीपकों को जल विसर्जित कर दें। अभिषेक से बची हुयी मदिरा भी इस भावना से जल में प्रवाहित कर दें कि जल की धारा के साथ-साथ आपके अंदर के समस्त विकारों का भी विर्सजन हो रहा है।
तंत्र साधना सार –
बाधा, रोग, शोक, दारिद्रय आदि समस्त विकार यदि दूर हो गये तो फिर लक्ष्मी जी की अहेतु की कृपा कहां दूर रह जाएगी। नशे के सेवन से जो त्रस्त हैं और वास्तव में इस विकार से छुटकारा पाना चाहते हैं, उनके लिए तो यह साधना विशेष रुप से फल दायी सिद्व होगी।
मानसश्री गोपाल राजू (भू.पू.वैज्ञानिक)
मो. 9760111555
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